11-05-84  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

ब्राह्मणों के हर कदम, संकल्प, कर्म से विधान का निर्माण

विधाता, वरदाता बापदादा मास्टर विधाता, वरदाता बच्चों प्रति बोले:-

‘‘विश्व रचता अपने नये विश्व के निर्माण करने वाले नए विश्व की तकदीर बच्चों को देख रहे हैं। आप श्रेष्ठ भाग्यवान बच्चों की तकदीर विश्व की तकदीर है। नये विश्व के आधार स्वरूप श्रेष्ठ बच्चे हो। नये विश्व के राज्य-भाग्य के अधिकारी विशेष आत्मायें हो। आपकी नई जीवन विश्व का नव-निर्माण करती हैं। विश्व को श्रेष्ठाचारी सुखी-शान्त-सम्पन्न बनाना ही है, आप सबके इस श्रेष्ठ दृढ़ संकल्प की अंगुली से कलयुगी दु:खी संसार बदल सुखी संसार बन जाता है क्योंकि सर्व शक्तिवान बाप की श्रीमत प्रमाण सहयोगी बने हो। इसलिए बाप के साथ आप सबका सहयोग, श्रेष्ठ योग विश्व-परिवर्तन कर लेता है। आप श्रेष्ठ आत्माओं का इस समय का सहजयोगी-राजयोगी जीवन का हर कदम, हर कर्म नये विश्व का विधान बन जाता है। ब्राह्मणों की विधि सदा के लिए विधान बन जाती है। इसलिए दाता के बच्चे दाता, विधाता और विधि-विधाता बन जाते हैं। आज लास्ट जन्म तक भी आप दाता के बच्चों के चित्रों द्वारा भक्त लोग मांगते ही रहते हैं। ऐसे विधि-विधाता बन जाते जो अब तक भी चीफ जस्टिस भी सभी को कसम उठाने के समय ईश्वर का या ईष्ट देव का स्मृति स्वरूप बनाए कसम उठवाते हैं। लास्ट जन्म में भी विधान में शक्ति आप विधि-विधाता बच्चों की चल रही है। अपना कसम नही उठाते। बाप का या आपका महत्व रखते हैं। सदा वरदानी स्वरूप भी आप हो। भिन्न-भिन्न वरदान, भिन्न-भिन्न देवताओं और देवियों द्वारा आपके चित्रों द्वारा ही मांगते हैं। कोई शक्ति का देवता है तो कोई विद्या की देवी है। वरदानी स्वरूप आप बने हो तब अभी तक भी परम्परा भक्ति की आदि से चलती रही है। सदा बापदादा द्वारा सर्व प्राप्ति स्वरूप प्रसन्नचित्त, प्रसन्नता स्वरूप बने हो तो अब तक भी अपने को प्रसन्न करने के लिए देवीदेवताओं को प्रसन्न करते हैं कि ये ही हमें सदा के लिए प्रसन्न करेंगे। सबसे बड़े ते बड़ा खज़ाना ‘सन्तुष्टता’ का बाप द्वारा आप सबने प्राप्त किया है। इसलिए सन्तुष्टता लेने के लिए सन्तोषी देवी की पूजा करते रहते हैं। सभी सन्तुष्ट आत्मायें - सन्तोषी माँ हो ना। सब सन्तोषी हो ना! आप सभी सन्तुष्ट आत्मायें सन्तोषी मूर्त हो। बापदादा द्वारा सफलता जन्म-सिद्ध अधिकार रूप में प्राप्त की है इसलिए सफलता का दान, वरदान आपके चित्रों से मांगते हैं। सिर्फ अल्प-बुद्धि होने के कारण, निर्बल आत्मायें होने के कारण, भिखारी आत्मायें होने के कारण अल्पकाल की सफलता ही मांगते हैं। जैसे भिखारी कभी भी यह नहीं कहेंगे कि हजार रूपया दो। इतना ही कहेंगे कुछ पैसे दे दो। रूपया, दो दे दो। ऐसे यह आत्मायें भी सुख-शान्ति पवित्रता की भिखारी अल्पकाल के लिए सफलता मांगेंगी। बस यह मेरा कार्य हो जाए, इसमें सफलता हो जाए। लेकिन मांगते आप सफलता स्वरूप आत्माओं से ही हैं। आप दिलाराम बाप के बच्चे दिलवाला बाप को सभी दिल का हाल सुनाते हो, दिल की बातें करते हो। जो किसी आत्मा से नहीं कर सकते वह बाप से करते हो। सच्चे बाप के सच्चे बच्चे बनते हो। अब भी आपके चित्रों के आगे सब दिल का हाल बोलते रहते हैं। जो भी अपनी कोई छिपाने वाली बात होगी, सबके स्नेही सम्बन्धी से छिपायेंगे लेकिन देवी-देवताओं से नहीं छिपायेंगे। दुनिया के आगे कहेंगे मैं यह हूँ, सच्चा हूँ, महान हूँ। लेकिन देवताओं के आगे क्या कहेंगे? जो हूँ वह यही हूँ। कामी भी हूँ तो कपटी भी हूँ। तो ऐसे नये विश्व की तकदीर हो। हर एक की तकदीर में पावन विश्व का राज्य भाग्य है।

ऐसे विधाता-वरदाता, विधि-विधाता सर्व श्रेष्ठ आत्मायें हो। हरेक के श्रेष्ठ मत रूपी हाथों में स्वर्ग के स्वराज्य का गोला है। ये ही माखन है। राज्य-भाग्य का माखन है। हरेक के सिर पर पवित्रता की महानता का, लाइट का क्राउन है। दिलतख्तनशीन हो। स्वराज्य के तिलकधारी हो। तो समझा ‘मैं’ कौन? ‘मैं कौन’ की पहेली हल करने आये हो ना? पहले दिन का पाठ यह पढ़ा ना। मैं कौन? मैं यह नहीं हूँ और मैं यह हूँ। इसी में ही सारा ज्ञान सागर का ज्ञान समाया हुआ है। सब जान गये हो ना! यही रूहानी नशा सदा साथ रहे। इतनी श्रेष्ठ आत्मायें हो। इतनी महान हो। हर कदम, हर संकल्प, हर कर्म यादगार बन रहा है। विधान बन रहा है। इसी श्रेष्ठ स्मृति से उठाओ। समझा। सारे विश्व की नजर आप आत्माओं की तरफ है। जो मैं करूँगा वो विश्व के लिए विधान और यादगार बनेगा। मैं हलचल में आऊंगी तो दुनिया हलचल में आयेगी। मैं सन्तुष्टता प्रसन्नता में रहूँगी, तो दुनिया सन्तुष्ट और प्रसन्न बनेगी। इतनी जिम्मेवारी हर विश्व नव-निर्माण के निमित्त आत्माओं की है। लेकिन जितनी बड़ी है उतनी हल्की है। क्योंकि सर्वशक्तिवान बाप साथ है। अच्छा-

ऐसे सदा प्रसन्नचित्त आत्माओं को, सदा मास्टर विधाता, वरदाता बच्चों को, सदा सर्व प्राप्ति स्वरूप सन्तुष्ट आत्माओ को, सदा याद द्वारा हर कर्म का यादगार बनाने वाली पूज्य महान आत्माओं को विधाता वरदाता बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’

कुमारों के अलग-अलग ग्रुप से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात

1. सभी श्रेष्ठ कुमार हो ना? साधारण कुमार नहीं, श्रेष्ठ कुमार! तन की शक्ति, मन की शक्ति सब श्रेष्ठ कार्य में लगाने वाले। कोई भी शक्ति विनाशी कार्य में लगाने वाले नहीं। विकारी कार्य है विनाशकारी कार्य, और श्रेष्ठ कार्य है - ईश्वरीय कार्य। तो सर्व शक्तियों को ईश्वरीय कार्य में लगाने वाले श्रेष्ठ कुमार। कहाँ व्यर्थ के खाते में तो कोई शक्ति नहीं लगाते हो? अभी अपनी शक्तियों को कहाँ लगाना है यह समझ मिल गई। इसी समझ द्वारा सदा श्रेष्ठ कार्य करो। ऐसे श्रेष्ठ कार्य में सदा रहने वाले, श्रेष्ठ प्राप्ति के अधिकारी बन जाते हैं। ऐसे अधिकारी हो? अनुभव करते हो कि श्रेष्ठ प्राप्ति हो रही है? या होनी है? हर कदम में पदमों की कमाई जमा हो रही है यह अनुभव है ना? जिसकी एक कदम में पदमों की कमाई जमा हो वह कितने श्रेष्ठ हुए! जिसकी इतनी जमा सम्पत्ति हो उसको कितनी खुशी होगी! आजकल के लखपति, करोड़पति को भी विनाशी खुशी रहती है आपकी अविनाशी प्रापर्टी है। श्रेष्ठ कुमार की परिभाषा समझते हो? ‘सदा हर शक्ति श्रेष्ठ कार्य में लगाने वाले’। व्यर्थ खाता सदा के लिए समाप्त हुआ? श्रेष्ठ खाता जमा हुआ? या दोनों चलता है? एक खत्म हुआ। अभी दोनों चलाने का समय नहीं है। अभी वह सदा के लिए खत्म। दोनों होगे तो जितना जमा होना चाहिए उतना नहीं होगा। गँवाया नही, जमा हुआ तो कितना जमा होगा! तो व्यर्थ खाता समाप्त हुआ, समर्थ खाता जमा हुआ।

2. कुमार जीवन शक्तिशाली जीवन है। कुमार जीवन में जो चाहे वह कर सकते हो। चाहे अपने को श्रेष्ठ बनायें, चाहे अपने को नीचे गिरायें। यह कुमार जीवन ही ऊँचा या नीचा होने वाली है। ऐसी जीवन में आप बाप के बन गये। विनाशी जीवन के साथी के कर्मबन्धन में बंधने के बजाए सच्चा जीवन का साथी ले लिया। कितने भाग्यवान हो! अभी आये तो अकेले आये या कम्बाइण्ड होकर आये? (कम्बाइण्ड) टिकेट तो नहीं खर्च की ना? तो यह भी बचत हो गई। वैसे अगर शरीर के साथी को लाते तो टिकेट खर्च करते, उनका सामान भी उठाना पड़ता और कमाकर रोज खिलाना भी पड़ता। यह साथी तो खाता भी नहीं सिर्फ वासना लेते हैं। रोटी कम नहीं हो जाती और ही शक्ति भर जाती है। तो बिना खर्चा, बिना मेहनत के और साथी भी अविनाशी, सहयोग भी पूरा मिलता है। मेहनत नहीं लेते और सहयोग देते हैं। कोई मुश्किल कार्य आये, याद किया और सहयोग मिला। ऐसे अनुभवी हो ना! जब भक्तों को भी भक्ति का फल देने वाले हैं तो जो जीवन का साथी बनने वाले हैं उनको साथ नहीं देंगे? कुमार कम्बाइण्ड तो बने लेकिन इस कम्बाइण्ड में बेफिकर बादशाह बन गये। कोई झंझट नहीं, बेफिकर हैं। आज बच्चा बीमार हुआ, आज बच्चा स्कूल नहीं गया... या कोई बोझ नहीं। सदा निर्बन्धन। एक के बन्धन में बंधने से अनेक बन्धनों से छूट गये। खाओ पियो मौज करो और क्या काम! अपने हाथ से बनाया और खाया। जो चाहो वह खाओ। स्वतन्त्र हो। कितने श्रेष्ठ बन गये। दुनिया के हिसाब से भी अच्छे हो। समझते हो ना कि दुनिया के झंझटों से बच गये। आत्मा की बात छोड़ो, शरीर के कर्म बन्धन के हिसाब से भी बच गये। ऐसे सेफ हो। कभी दिल तो नहीं होती कि कोई ज्ञानी साथी बना दें? कोई कुमारी का कल्याण कर दें? ऐसी दिल होती है? यह कल्याण नहीं है - अकल्याण है। क्यों? एक बन्धन बंधा और अनेक बन्धन शुरू हुए। यह एक बन्धन अनेक बन्धन पैदा करता। इसलिए मदद नहीं मिलेगी। बोझ होगा। देखने में मदद है लेकिन है अनेक बातों का बोझ। जितना बोझ कहो उतना बोझ है। तो अनेक बोझ से बच गये। कभी स्वप्न में भी नहीं सोचना। नहीं तो ऐसा बोझ अनुभव करेंगे जो उठना ही मुश्किल। स्वतन्त्र रहकर बन्धन में बंधे तो पद्मगुणा बोझ होगा। वह अनजान से बिचारे बंध गये, आप जानबूझकर बंधेंगे तो और पश्चाताप् का बोझ होगा। कोई कच्चा तो नहीं है? कच्चे की गति नहीं होती। न यहाँ का रहता, न वहाँ का रहता। आपकी तो सद्गति हो गई है ना। सद्गति माना श्रेष्ठ गति। थोड़ा संकल्प आता हैं? फोटो निकल रहा है। अगर कुछ नीचे ऊपर किया तो फोटो आयेगा। जितने पक्के बनेंगे उतना वर्तमान और भविष्य श्रेष्ठ है।

3. सभी समर्थ कुमार हो ना! समर्थ हो? सदा समर्थ आत्मायें जो भी संकल्प करेंगी, जो भी बोल बोलेंगी, कर्म करेंगी वह समर्थ होगा। समर्थ का अर्थ ही है - व्यर्थ को समाप्त करने वाले। व्यर्थ का खाता समाप्त और समर्थ का खाता सदा जमा करने वाले। कभी व्यर्थ तो नहीं चलता? व्यर्थ संकल्प या व्यर्थ बोल या व्यर्थ समय। अगर सेकण्ड भी गया तो कितना गया! संगम पर सेकण्ड कितना बड़ा है। सेकण्ड नहीं लेकिन एक सेकण्ड एक जन्म के बराबर है। एक सेकण्ड नहीं गया, एक जन्म गया। ऐसे महत्व को जानने वाले समर्थ आत्मायें हो ना। सदा यह स्मृति रहे कि हम समर्थ बाप के बच्चे हैं, समर्थ आत्मायें हैं। समर्थ कार्य के निमित्त हैं। तो सदा ही उड़ती कला का अनुभव करते रहेंगे। कमज़ोर उड़ नहीं सकते। समर्थ सदा उड़ते रहेंगे। तो कौन सी कला वाले हो? उड़ती कला या चढ़ती कला? चढ़ने में सांस फूल जाता है। थकते भी हैं, साँस भी फूलता है। और उड़ती कला वाले सेकण्ड में मंज़िल पर सफलता स्वरूप बने। चढ़ती कला है तो जरूर थकेंगे, साँस भी फूलेगा - क्या करें, कैसे करें, यह साँस फूलता है। उड़ती कला में सबसे पार हो जाते। टचिंग आती है कि यह करें, यह हुआ ही पड़ा है। तो सेकण्ड में सफलता की मंज़िल को पाने वाले - इसको कहा जाता है समर्थ आत्मा। बाप को खुशी होती है कि सभी उड़ती कला वाले बच्चे हैं, मेहनत क्यों करें। बाप तो कहेंगे - बच्चे मेहनत से बचे रहें। जब बाप रास्ता दिखा रहा है - डबल लाइट बना रहा है तो फिर नीचे क्यों आ जाते हो? क्या होगा, कैसे होगा, यह बोझ है। सदा कल्याण होगा, सदा श्रेष्ठ होगा, सदा सफलता जन्म सिद्ध अधिकार है, इस स्मृति से चलो।

4. कुमारों को पेपर देने के लिए युद्ध करनी पड़ती है। पवित्र बनना है, यह संकल्प किया तो माया युद्ध करना शुरू कर देती है। कुमार जीवन श्रेष्ठ जीवन है। महान आत्मायें हैं। अभी कुमारों को कमाल करके दिखानी है। सबसे बड़े ते बड़ी कमाल है - बाप के समान बन बाप के साथी बनाना। जैसे आप स्वयं बाप के साथी बने हो ऐसे औरों को भी साथी बनाना है। माया के साथियों को बाप के साथी बनाना है - ऐसे सेवाधारी। अपने वरदानी स्वरूप से शुभ भावना और शुभ कामना से बाप का बनाना है। इसी विधि द्वारा सदा सिद्धि को प्राप्त करना है। जहाँ श्रेष्ठ विधि है वहाँ सिद्धि जरूर है। कुमार अर्थात् सदा अचल। हलचल में आने वाले नहीं। अचल आत्मायें औरों को भी अचल बनाती हैं।

5. सभी विजयी कुमार हो ना? जहाँ बाप साथ है वहाँ सदा विजय है। सदा बाप के साथ के आधार से कोई भी कार्य करेंगे तो मेहनत कम और प्राप्ति ज्यादा अनुभव होगी। बाप से थोड़ा सा भी किनारा किया तो मेहनत ज्यादा प्राप्ति कम। तो मेहनत से छूटने का साधन है - बाप का हर सेकण्ड हर संकल्प में साथ हो। इस साथ से सफलता हुई पड़ी है। ऐसे बाप के साथी हो ना? जो बाप की आज्ञा है उस आज्ञा के प्रमाण कदम हों। बाप के कदम के पीछे कदम हो। यहाँ कदम रखें या न रखें, राइट है या रांग है, यह सोचने की भी जरूरत नहीं। नया कोई रास्ता हो तो सोचना भी पड़े। लेकिन जब कदम पर कदम रखना है तो सोचने की बात नहीं। सदा बाप के कदम पर कदम रख चलते चलो। तो मंजल समीप ही है। बाप कितना सहज करके देते हैं - ‘श्रीमत’ ही कदम है। श्रीमत के कदम पर कदम रखो। तो मेहनत से सदा छूटें रहेंगे। सर्व सफलता अधिकार के रूप में होगी। छोटे कुमार भी बहुत सेवा कर सकते हैं। कभी भी मस्ती नहीं करना, आप की चलन, बोल चाल ऐसा हो जो सब पूछें कि यह किस स्कूल में पढ़ने वाले हैं। तो सेवा हो जायेगी ना। अच्छा-

युगलों के ग्रुप से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात:-

1. एक मत के पट्टे पर चलने वाले तो फास्ट रफ्तार वाले होंगे ना! दोनों की मत एक, यह एक मत ही पहिया है। एक मत के पहियों के आधार पर चलने वाले सदा तीव्रगति से चलते हैं। दोनों ही पहिये श्रेष्ठ पहिये हैं। एक ढीला एक तेज तो नहीं हो ना? दोनों पहिये एकरस। तीव्र पुरूषार्थ में पाण्डव नम्बरवन हैं या शक्तियाँ? एक दो को आगे बढ़ाना अर्थात् स्वयं आगे बढ़ना। ऐसे नहीं आगे बढ़ाकर खुद पीछे हो जाएं। आगे बढ़ाना स्वयं आगे बढ़ना। सभी लकी आत्मायें हो ना? दिल्ली और बाम्बे निवासी विशेष लकी हैं - क्योंकि रास्ते चलते भी बहुत खज़ाना मिलता है। विशेष आत्माओं का संग, सहयोग, शिक्षा सब प्राप्त होता है। यह भी वरदान है जो बिना निमन्त्रण के मिलता रहता है। दूसरे लोग कितनी मेहनत करते हैं। सारे ब्राह्मण जीवन में या सेवा की जीवन में ऐसी श्रेष्ठ आत्मायें दो-तीन बारी भी कहाँ पर मुश्किल पहुँचते हैं लेकिन आप बुलाओ, न बुलाओ, आपके पास सहज ही पहुँच जाते हैं। तो संग का रंग जो प्रसिद्ध है, विशेष आत्माओं का संग भी उमंग दिलाता है। कितना सहज भाग्य प्राप्त करने वाली भाग्यवान आत्मायें हो। सदा गीत गाते रहो - ‘वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य’। जो प्राप्ति हो रही है उसका रिटर्न है - सदा उड़ती कला। रूकने और चलने वाले नहीं। सदा उड़ने वाले।

2. सदा अपने को बाप की छत्रछाया के अन्दर रहने वाले अनुभव करते हो? बाप की याद ही ‘छत्रछाया’ है। जो छत्रछाया के अन्दर रहते वह सदा सेफ रहते हैं। कभी बरसात या तूफान आता तो छत्रछाया के अन्दर चले जाते हैं। ऐसे बाप की याद ‘छत्रछाया’ है। छत्रछाया में रहने वाले सहज ही मायाजीत हैं। याद को भूला अर्थात् छत्रछाया से बाहर निकला। बाप की याद सदा साथ रहे। जो ऐसे छत्रछाया में रहने वाले हैं उन्हें बाप का सहयोग सदा मिलता रहता है। हर शक्ति की प्राप्ति का सहयोग सदा मिलता रहता है। कभी कमज़ोर होकर माया से हार नहीं खा सकते। कभी माया याद भुला तो नहीं देती है? 63 जन्म भूलते रहे, संगमयुग है याद में रहने का युग। इस समय भूलना नहीं। भूलने से ठोकर खाई, दु:ख मिला। अभी फिर कैसे भूलेंगे! अभी सदा याद में रहने वाले।

3. सदा अपने विशेष पार्ट को देख हर्षित रहते हो? ऊँचे ते ऊँचे बाप के साथ पार्ट बजाने वाले विशेष पार्टधारी हो। विशेष पार्टधारी का हर कर्म स्वत: ही विशेष होगा क्योंकि स्मृति में है कि - मैं विशेष पार्टधारी हूँ। जैसे स्मृति वैसी स्थिति स्वत: बन जाती है।

हर कर्म, हर बोल विशेष। साधारणता समाप्त हुई। विशेष पार्टधारी सभी को स्वत: आकर्षित करते हैं। सदा इस स्मृति में रहो कि हमारे इस विशेष पार्ट द्वारा अनेक आत्मायें अपनी विशेषता को जानेंगी। किसी भी विशेष आत्मा को देख स्वयं भी विशेष बनने का उमंग आता है। कहाँ भी रहो, कितने भी मायावी वायुमण्डल में रहो लेकिन विशेष आत्मा हर स्थान पर विशेष दिखाई दे। जैसे हीरा मिट्टी के अन्दर भी चमकता दिखाई देता। हीरा - हीरा ही रहता है। ऐसे कैसा भी वातावरण हो लेकिन विशेष आत्मा सदा ही अपनी विशेषता से आकर्षित करेगी। सदा याद रखना कि - हम विशेष युग की विशेष आत्मायें हैं।

विदाई के समय:-

संगमयुग है ही मिलने का युग। जितना मिलेंगे उतना और मिलने की आशा बढ़ेगी। और मिलने की शुभ आशा होनी भी चाहिए। क्योंकि यह मिलने की शुभ आशा ही माया जीत बना देती है। यह मिलने का शुभ संकल्प सदा बाप की याद स्वत: दिलाता है। यह तो होनी ही चाहिए। यह पूरी हो जायेगी तो संगम पूरा हो जायेगा। और सब इच्छायें पूरी हुई लेकिन याद में सदा समाये रहें, यह शुभ इच्छा आगे बढ़ायेगी। ऐसे है ना! तो सदा मिलन मेला होता ही रहेगा। चाहे व्यक्त द्वारा चाहे अव्यक्त द्वारा। सदा साथ ही रहते हैं फिर मिलने की आवश्यकता ही क्या! हर मिलन का अपना-अपना स्वरूप और प्राप्ति है। अव्यक्त मिलन अपना और साकार मिलन अपना। मिलना तो अच्छा ही है। अच्छा- सदा शुभ और श्रेष्ठ प्रभात रहेगी। वह तो सिर्फ गुडमोर्निंग करते लेकिन यहाँ शुभ भी है और श्रेष्ठ भी है। हर सेकण्ड शुभ और श्रेष्ठ इसलिए सेकण्ड-सेकण्ड की मुबारक हो। अच्छा। ओमशान्ति।